साल 2000 में टोंक के मालपुरा दंगाें के मामले में जयपुर की विशेष अदालत ने एक केस में 8 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। दूसरे केस में 5 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है। दंगों में 12 लोगों की मौत हुई थी। मरने वालों में दो नाबालिग भी थे।
इन दंगों की वजह थे साल 1992 में हुए दंगे। 92 के दंगों में 26 लोगों की मौत हो गई थी। 10 जुलाई 2000 को सैकड़ों लोग लाठी, फरसे, छुरे, चाकू, तलवार और पत्थर लेकर आबादी वाले इलाकों में घुस गए थे। 92 के दंगों के आरोपी की हत्या से शुरू हुआ सिलसिला 12 मौतों के बाद थमा।
जो भी सामने आया, उस पर हमला कर दिया गया। औरतों के साथ अभद्रता की गई। दंगाइयों ने बच्चे-बूढ़ों तक को नहीं छोड़ा। ये खूनी खेल दोपहर से देर रात तक चलता रहा।
दंगों की कहानी जानने के लिए भास्कर टीम टोंक के मालपुरा पहुंची। उन चश्मदीदों से बात की, जिन्होंने अपनों की हत्या होते देखी।
1992 के दंगा आरोपी की हत्या से हुई थी शुरुआत
भास्कर टीम सबसे पहले मौजूदा सरपंच रुचिता सैनी के घर पहुंची। 2000 के दंगों की शुरुआत रुचिता सैनी के ससुर कैलाश की हत्या के बाद हुई थी। रुचिता के पति मनोज कुमार सैनी ने बताया कि ये घर उन्होंने हाल में बनाया है। उनका पैतृक मकान बारगांव मोहल्ले में पुरानी तहसील के पास है। दंगों के बाद अब सुरक्षा के लिहाज से वहां नहीं रहते हैं।
मनोज हमें अपने घर के अंदर ले गए। वहां उनके चचेरे भाई रामप्रकाश सैनी, उनकी माता सेवती देवी, सगे भाई महेश कुमार सैनी और बद्रीलाल गुर्जर दंगे पर आए कोर्ट के फैसले पर चर्चा कर रहे थे। दरअसल फैसले में कैलाश की हत्या मामले में कोर्ट ने सभी 5 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है।
रामप्रकाश सैनी अपने चाचा कैलाश की हत्या के मामले में ‘आई विटनेस’ थे। उन्होंने बताया- 10 जुलाई 2000 का वो दिन आज भी मुझे अच्छी तरह याद है। दोपहर के ढाई-तीन बज रहे थे। मैं ट्रैक्टर के टायर का काम कराने के लिए झालरा तालाब के पास ट्रक स्टैंड पर नेमीचंद की दुकान पर गया हुआ था। मैं दुकानदार से बात कर रहा था। तभी आगे सड़क पर एक बाइक के टक्कर लगने और गिरने की आवाज आई।
मैंने और दुकानदार ने बाहर की तरफ देखा तो एक काली स्प्लेंडर बाइक नीचे पड़ी थी। एक आदमी जमीन पर गिरा हुआ था। उसे आसिफ मास्टर, मोहम्मद हसीब, फिरोज और उमर मार रहे थे। उनके पास खड़ा अब्दुल वहाब जोर-जोर से मारो-मारो चिल्ला रहा था।
वो जिसे मार रहे थे, मैं उसे क्लियर नहीं देख पाया था। अचानक हुए इस घटनाक्रम से मैं डर भी गया था। मारपीट करने वालों के पास छुरा, चाकू और कुल्हाड़ी थी। इसके बाद आसिफ, फिरोज और हसीब लाल रंग की बाइक पर बैठ कर छुरे को हवा में लहराते हुए वहां से भाग गए। उमर और अब्दुल वहाब वहां से हरिजन बस्ती की गली से भाग गए। इसके बाद वहां मौके पर बड़ी भीड़ जमा हो गई। मैं भी नजदीक पहुंचा।
काफी देर बाद वहां पुलिस आई और खून से लथपथ मेरे चाचा को गाड़ी में डालकर हॉस्पिटल ले गए। वहां से उन्हें जयपुर के लिए रेफर कर दिया गया। अब तक मेरी चाची और परिवार के दूसरे सभी लोग वहां पहुंच गए थे।
पुलिस ने हमसे एक खाली कागज पर साइन करवाए और जयपुर के लिए रवाना कर दिया। रास्ते में टीला बाला पुलिस चौकी के पास चाचा कैलाश ने दम तोड़ दिया। इसके बावजूद हम जयपुर एसएमएस पहुंच गए। वहां अगली सुबह पोस्टमाॅर्टम की कार्रवाई की गई और दोपहर तक वापस शव लेकर मालपुरा पहुंचे।
रामप्रकाश की बात खत्म होने के बाद पास बैठे कैलाश के बेटे मनोज ने बोलना शुरू किया। मनोज ने बताया- उस दिन बद्री गुर्जर ने मुझे फोन किया था कि झालरा तालाब के पास रामद्वारा के सामने तुम्हारे पापा के साथ मारपीट हो रही है। इस पर तुरंत मैं एक बाइक लेकर वहां पहुंचा। मैंने देखा कि पांच लोग वहां मेरे पापा के साथ मारपीट कर रहे थे। मैं पुलिस को बुलाने भागकर थाने पहुंचा। इसके बाद वापस मौके पर आया।
11 जुलाई को उनका अंतिम संस्कार करने के बाद प्रत्यक्षदर्शियों से हुई बातचीत के बाद हम थाने पर पहुंचे। वहां सीआईडी सीबी के अधिकारियों के सामने आसिफ मास्टर, मोहम्मद हसीब, फिरोज, उमर और अब्दुल वहाब के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दी।
कैलाश के खिलाफ थे 18 मामले कैलाश साल 1992 में मालपुरा में हुए दंगों के मामले में 13 आरोपियों में शामिल था और बजरंग दल का अध्यक्ष था। पत्नी सेवती देवी बीजेपी से नगरपालिका उपाध्यक्ष थी। कैलाश को 1992 के मामले में हत्या से महज 4 साल पहले ही जमानत मिली थी। वो मालपुरा थाने का ए श्रेणी का हिस्ट्रीशीटर भी था और उसके खिलाफ 18 मामले चल रहे थे। कैलाश की हत्या के बाद कस्बे में हालात तनावपूर्ण हो गए और दंगे भड़कने लग गए थे। अलग-अलग जगहों पर 11 और लोगों को इन दंगों में मौत के घाट उतार दिया गया।
खेत से आ रहे किसान को पत्नी के सामने मारा मनोज के घर पर हुई बातचीत के बाद पड़ताल की अगली कड़ी में भास्कर टीम मालपुरा दंगे में मारे गए दूसरे शख्स हरिराम शर्मा के घर पहुंची। वहां उनकी पत्नी धन्नी देवी मिलीं।
धन्नी देवी ने 10 जुलाई 2000 की आपबीती सुनाई। बोलीं- मैं, मेरे पति (हरिराम) और मेरी देवरानी तुलसी देवी उस दिन शाम 6 बजे के आस-पास अपने खेत से घर लौट रहे थे। तभी श्मशान भूमि के पास रेलवे ट्रैक के किनारे 100-125 लोगों की भीड़ ने हमें घेर लिया।
सबके हाथों में लाठियां, फरसिया और कुल्हाड़ियां थीं। अब्दुल्ला सांई के लड़के ने मेरे पति को नीचे गिरा दिया। इसके बाद कालू सांई के लड़के ने फर्सी से उनके जांघ पर वार कर दिया। नाइद सैयद के भाई ने फर्सी से उनके सिर में वार किया।
इसके बाद वहां खड़ी भीड़ उन पर टूट पड़ी। मैंने और मेरी देवरानी ने उन्हें खूब बचाने का प्रयास किया, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। भीड़ के आगे हम बेबस थे। इसके बाद उन्हें मरणासन्न हालत में छोड़ कर ये सब वहां से टोड़ा रोड की तरफ चले गए।
इस मामले में धन्नी देवी ने इस्लाम, मोहम्मद इशाक, अब्दुल रज्जाक, इरशाद, मोहम्मद जफ़र, साजिद अली, बिलाल अहमद और मोहम्मद हबीब के खिलाफ रिपोर्ट दी। 10 दिसंबर 2004 को पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट पेश की थी और अब 2 दिसंबर 2024 को कोर्ट ने सभी 8 आरोपियों को उम्रकैद की सजा दी है।
डिग्गी दर्शन जा रहे परिवार पर हमला 10 जुलाई के दिन ही शाम में झालरापाटन के प्रतिष्ठित व्यवसायी मोहनलाल कुमावत का परिवार एक सगाई समारोह में शामिल होने के बाद डिग्गी-कल्याणजी के दर्शनों के लिए टोड़ा रोड से कमांडर जीप में जा रहा था।
रास्ते में दंगाइयों की एक भीड़ ने हमला बोल दिया। इसी दौरान जीप में बैठी जीवित बची महिला मंजू कुमावत ने तब मीडिया को बताया था- मालपुरा में एंट्री करते ही दंगाइयों ने जीप पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया। ड्राइवर ने हमें बचाने की कोशिश की और गाड़ी को एक बाड़े में घुसा दिया।
उस समय हमें मारने के लिए करीब 200 लोगों की भीड़ वहां आ गई थी। भीड़ ने जीप के कांच तोड़ दिए। चाकू और तलवारों से हमला बोल दिया। मैंने और मेरी मां भगवती देवी ने दंगाइयों के सामने हाथ जोड़े, लेकिन वो नहीं पिघले।
पति जितेंद्र, पिता मोहन, भाई संजय और एक अन्य रिश्तेदार छीतर कुमावत की हत्या कर दी। वहीं इस हमले में मैं, मेरी मां समेत तीन महिलाएं और मेरा छोटा बेटा शुभम घायल हो गए थे। दंगाई हमें ज़िंदा जलाने का प्लान बना रहे थे। हमारी जीप के ऊपर पेट्रोल भी डाला गया था। हालांकि इस बीच वहां पुलिस पहुंच गई और हमें बचाया।
इस मामले में कुल 16 आरोपी बनाए गए थे। फिलहाल इस मामले में कोर्ट में सुनवाई चल रही है। 7 दिसंबर को अगली पेशी है।
घाटी रोड पर खेतों में 4 लोगों को मारा 10 जुलाई 2000 को ही मालपुरा इलाके में खेत में ट्रैक्टर चला रहे सलीम और मोहम्मद अली को दंगाइयों की भीड़ ने हमला कर मार डाला। वहीं पास में ही बकरियां चरा रहे दो बच्चे बंटी और जुम्मा भी भीड़ का शिकार बन गए। दोनों बच्चों को बड़ी ही निर्दयता से मार दिया गया।
मोहम्मद इशाक उर्फ बंटी के पिता यूसुफ ने बताया कि उनका बेटा बंटी और भाई जुम्मा उस दिन घाटी रोड के जंगल की तरफ बकरियां चराने गए थे। बकरियां तो अपने आप घर आ गई थीं, लेकिन वापस वो दोनों कभी नहीं आए। इसके बाद तो कर्फ्यू भी लग गया था। पुलिस की गाड़ी आई। मुझे बैठा कर थाने ले गए और बंद कर दिया। चार दिन में जेल में रहा था। इधर उस दिन शाम को 6 बजे घर पर पता चल गया था कि दोनों बच्चों की हत्या कर दी गई है।
इस्लाम ने बताया कि उनका भाई सलीम और चाचा मोहम्मद अली उस दिन घाटी रोड पर खेतों में थे, जहां दंगाइयों की भीड़ ने उन्हें बेरहमी से कत्ल कर दिया था।
इन दोनों ही मामलों में पुलिस ने अलग-अलग FIR दर्ज कर 17 आरोपियों रामस्वरूप धोभी, हीरालाल शर्मा, कस्तूर रेगर, रामकिशोर, श्योजी, सुखलाल गुर्जर, बछराज गुर्जर, देवकरण गुर्जर, किशन गुर्जर, किशन रामदेव, योगेश, छोटू बैरवा और रतन गुर्जर सहित अन्य के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। फिलहाल इस मामले में सुनवाई चल रही है।
36 घंटे बाद पास के गांव में महिला को घर में घुसकर मारा मालपुरा दंगों की आग पास के गांव टोरडी सागर गांव तक पहुंच गई थी। कैलाश की हत्या के 36 घंटे बाद दंगाइयों की भीड़ ने टोरडी सागर गांव में एक महिला को जिंदा जला दिया। इस दौरान वहां मौजूद चार बच्चे भी झुलस गए। वहां एक धार्मिक स्थल में भी आग लगा दी गई थी।
वहां दंगाइयों की भीड़ गांव के बाजार बंद करवाने पहुंची थी। इसी दौरान कुछ लोगों ने एक साइकिल की दुकान और एक घर में आग लगा दी। कुछ लोग बाबू खां के घर में घुस गए। वहां उसकी पत्नी भंवरी देवी और बच्चों पर हमला कर दिया।
हमले में बाबू खां की पत्नी भंवरी देवी मारी गई। उसका बच्चा व तीन बच्चियां घायल हो गईं। इसके बाद घर में आग लगा दी गई। बाद में पुलिस को एक और घर से दो दिन पुराना शव मिला था। बकौल पूर्व सरपंच भंवर मुवाल- इस मामले में अब राजीनामा हो गया है।