देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के 21वें मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। 4 दिसंबर, बुधवार को उन्हें विधायक दल का नेता चुना गया। CM के तौर पर ये उनकी तीसरी पारी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS के एक सोर्स ने दैनिक भास्कर को 11 दिन पहले ही बता दिया था कि फडणवीस ही महाराष्ट्र के CM होंगे।
इसकी स्क्रिप्ट चुनाव के ऐलान से 4 महीने पहले अगस्त में लिख ली गई थी। RSS और BJP ने फॉर्मूला तय किया था कि अगर महायुति की सरकार बनी, तो मुख्यमंत्री BJP का ही होगा। किसी वजह से अगर सरकार नहीं बन सकी, तो देवेंद्र फडणवीस को BJP का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाएगा।
BJP के एक सीनियर लीडर ने दैनिक भास्कर को बताया कि शिंदे और अजित पवार को पहले से पता था कि महायुति की सरकार बनने पर BJP का ही मुख्यमंत्री बनेगा। तभी बहुमत मिलने के बाद एकनाथ शिंदे दिल्ली पहुंचे तो अमित शाह ने उनसे CM पद के बारे में कोई चर्चा नहीं की।
सवाल ये है कि अगर सब कुछ तय था, तो महाराष्ट्र में सरकार बनने में इतनी देरी क्यों हुई। शिंदे की नाराजगी की खबरें क्यों आ रही थीं। इस स्टोरी में पढ़िए, फडणवीस के CM बनने की कहानी और इन सारे सवालों के जवाब…
PM मोदी ने 2022 में फडणवीस से वादा किया था, अब पूरा किया RSS के एक सोर्स बताते हैं कि फडणवीस शुरुआत से प्रधानमंत्री मोदी की पहली पसंद रहे हैं। 30 जून, 2022 को एकनाथ शिंदे CM बनाए गए, तब PM मोदी के कहने पर ही फडणवीस ने डिप्टी CM का पद मंजूर किया था। PM मोदी ने तभी वादा किया था कि अगली बार सत्ता में आने पर फडणवीस को सम्मानजनक पोजिशन दी जाएगी।
फडणवीस ने तब CM की कुर्सी छोड़कर PM मोदी और RSS प्रमुख मोहन भागवत के दिल में बड़ी जगह बनाई थी। इसी का नतीजा है कि वे दोनों के करीब हैं। अब उनके हाथ में CM और फिर BJP अध्यक्ष बनने का विकल्प है।
BJP से जुड़े एक सोर्स बताते हैं कि 23 नवंबर को आए रिजल्ट में महायुति को बहुमत मिलते ही प्रधानमंत्री मोदी ने देवेंद्र फडणवीस को फोन किया था। उन्हें अगला मुख्यमंत्री बनने की बधाई तक दे दी थी।
इमेज खराब न हो इसलिए एकनाथ शिंदे ने लिया लंबा वक्त अब सवाल ये है कि सब तय था तो एकनाथ शिंदे ऐसा क्यों दिखा रहे हैं कि वे नाराज हैं। कभी वे अपने गांव चले गए, तो कभी लोगों से मिलना-जुलना बंद कर दिया। यहां तक कि एक इंटरव्यू में उन्होंने ये तक कह दिया- ‘मैं जनता का मुख्यमंत्री हूं और जनता चाहती है कि मैं ही CM बनूं।’
इसका जवाब महाराष्ट्र की सियासी नब्ज समझने वाले सीनियर जर्नलिस्ट विनोद राउत देते हैं। वे कहते हैं, ‘महाराष्ट्र में 2019 में BJP ने शिवसेना को नजरअंदाज किया था। इसके बाद उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और NCP के साथ मिलकर सरकार बना ली। इससे BJP को सबक मिला कि राजनीति में अपने सहयोगियों को हल्के में नहीं लेना चाहिए।‘
‘आपके पास जब बहुमत नहीं होता, तो आप सरकार बनाने में जल्दबाजी करते हैं। बहुमत होने पर सियासी पार्टियां आराम से काम करती हैं। इसलिए BJP ने इस मामले में जल्दबाजी नहीं दिखाई। BJP ये भी मैसेज देना चाहती है कि वो अपने पार्टनर्स को हल्के में नहीं ले रही, बल्कि उन्हें पूरा वक्त दे रही है।‘
विनोद राउत आगे कहते हैं, ‘शिवसेना तोड़ने के दौरान शिंदे ने कहा था कि उद्धव ने हिंदू अस्मिता के साथ समझौता करके कांग्रेस और NCP से हाथ मिलाया है। उन्होंने शिवसैनिकों को कमजोर किया है। शिंदे को शिवसैनिकों तक ये मैसेज देना था कि हम सत्ता के लिए किसी के सामने झुकने वाले नहीं है। इसलिए सब कुछ पता होने के बावजूद उन्होंने फेस सेविंग के लिए ये सब कुछ किया।‘
‘शिंदे जनता में मैसेज देना चाहते हैं कि वे एक जुझारू नेता हैं और आखिरी दम तक कोशिश करेंगे। उन्होंने कभी भी सार्वजनिक मंच पर ये नहीं कहा कि उन्होंने CM पद का दावा छोड़ा है। वे हमेशा यही कहते रहे कि वे सरकार बनाने में रोड़ा नहीं बनने वाले और मोदी-शाह की बात मानेंगे।‘
‘शिंद ये जानते थे कि वे अगर पहले दिन ही सरेंडर कर देंगे तो जनता के बीच गलत मैसेज जाएगा। ये लगेगा कि उद्धव वाली शिवसेना से शिंदे वाली शिवसेना कमजोर है।‘
BJP ने भी फेस सेविंग के लिए शिंदे को भरपूर वक्त दिया विनोद आगे बताते हैं, ‘ये BJP के लिए भी फेस सेविंग रही। उद्धव ठाकरे और संजय राउत लगातार कहते रहे हैं कि BJP यूज एंड थ्रो करती है। वो जीत के बाद शिंदे को साइडलाइन कर सरकार बना लेगी।‘
‘यही वजह है कि BJP ने ऐसा दिखाया कि वे शिंदे को पूरा सम्मान दे रहे हैं। अमित शाह ने शिंदे से अकेले में बात की। BJP नेता भी लगातार उनसे मिलते रहे। अपने नाम का ऐलान होने से एक दिन पहले फडणवीस भी उनसे मिलने गए थे।‘
शिंदे की बॉडी लैंग्वेज भी बदली सोर्स बताते हैं कि जिस दिन शिंदे, फडणवीस और अजित पवार, गृहमंत्री अमित शाह से मिलने दिल्ली गए थे, उस दिन की तस्वीरों से बहुत कुछ साफ हो गया था। उसमें फडणवीस और अजित का चेहरा खिला हुआ था। वहीं शिंदे का चेहरा उतरा नजर आ रहा था। वे जनता के बीच ये मैसेज देना चाहते हैं कि मुख्यमंत्री पद न मिलने से वे दुखी हैं।
गृह और वित्त मंत्रालय पर भी शिंदे को अमित शाह से ठोस भरोसा नहीं मिला। इन चर्चाओं से सबसे ज्यादा विचलित शिंदे के विधायक हुए। दो दिन बाद शिंदे के करीबी विधायक भरत गोगावले ने कन्फर्म भी किया कि शिंदे सरकार से बाहर रहना चाहते थे, लेकिन विधायकों के दबाव में ऐसा नहीं कर सके।
फडणवीस इन 5 वजहों से बने CM BJP और RSS की पहली पसंद फडणवीस ही रहे, लेकिन ऐसा क्यों हुआ। सीनियर जर्नलिस्ट जितेंद्र दीक्षित इसके पीछे ये 5 वजहें बताते हैं…
1. RSS का साथ फडणवीस को RSS का सपोर्ट है। एक तो वे नागपुर से आते हैं, जहां RSS का मुख्यालय है। दूसरा उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत RSS से ही की है। लोकसभा चुनाव के वक्त RSS ज्यादा एक्टिव नहीं था, लेकिन विधानसभा चुनाव के वक्त संघ ने काफी मेहनत की। माना जाता है कि इसी वजह से BJP को प्रचंड जीत मिली है।
फडणवीस ने हमेशा RSS के अनुशासन का पालन किया है। फायदे-नुकसान की परवाह किए बिना फडणवीस ने कभी भी RSS का स्वयंसेवक होने की बात नहीं छिपाई। वे खुलकर RSS के कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। विजयादशमी के समारोह में तो वे RSS की फुल ड्रेस में शामिल होते हैं।
2. BJP के सबसे बड़े रणनीतिकार महायुति की जीत में देवेंद्र फडणवीस की अहम भूमिका नकारी नहीं जा सकती है। 2014 से लेकर 2019 तक का उनका कार्यकाल अच्छा रहा। इसी का नतीजा था कि 2019 में BJP-शिवसेना गठबंधन को जीत मिली। 2024 के नतीजे भी पार्टी के पक्ष में आए हैं।
वे महायुति के स्टार प्रचारक थे। सीट बंटवारे से लेकर उम्मीदवारों का सिलेक्शन तक फडणवीस ने किया। बाकी सहयोगी पार्टियों के साथ तालमेल बैठाने का काम भी उन्होंने ही किया।
3. विरोधी पार्टियों को कमजोर किया सत्ता से बाहर रहते हुए भी फडणवीस ने 2019 के बाद ठाकरे सरकार को चैन से नहीं रहने दिया। माना जाता है कि शिवसेना और NCP में बगावत की स्क्रिप्ट भी फडणवीस ने ही लिखी थी।
उन्हीं की कोशिश से BJP ने महाराष्ट्र में अपनी सभी विरोधी पार्टियों को कमजोर किया। उनकी बदौलत कभी छोटे भाई की भूमिका में रहने वाली BJP महाराष्ट्र की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। इसलिए उन्हें पार्टी का असली चाणक्य कहा जा रहा है।
4. महायुति के नेताओं के साथ अच्छे संबंध देवेंद्र फडणवीस BJP के इकलौते ऐसे नेता हैं, जिनके महायुति के लगभग सभी बड़े नेताओं से अच्छे संबंध हैं। BJP और RSS ये मानते हैं कि मुख्यमंत्री बनने के बाद वे सबको साथ लेकर चल सकते हैं और अगर कोई विवाद होता है तो उसे आसानी से सुलझा सकते हैं।
5. सरकार चलाने का अनुभव फडणवीस के पास बतौर मुख्यमंत्री सरकार चलाने का 5 साल और डिप्टी CM के तौर पर ढाई साल का अनुभव है। महाराष्ट्र में विकास, हिंदुत्व और सभी जातियों को साथ लेकर सरकार चलाने की क्षमता फडणवीस की तुलना में महाराष्ट्र के बाकी नेताओं में नहीं है।
फडणवीस को CM बना BJP ने कई पैटर्न बदले 2014 के बाद BJP ने मुख्यमंत्री चुनने में जब भी 72 घंटे से ज्यादा का वक्त लगाया, तब CM की कुर्सी पर सरप्राइजिंग चेहरे की एंट्री हुई है। फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाकर BJP ने ये पैटर्न बदल दिया। महाराष्ट्र में उनका नाम BJP में पहले से साफ था।
दूसरा महाराष्ट्र में 46 साल में 9 डिप्टी CM बने, पर उनमें से किसी को मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं मिली। इस बार ये पैटर्न भी बदल गया है। फडणवीस डिप्टी रहने के बाद मुख्यमंत्री बन रहे हैं।
संजय राउत बोले- महाशक्ति के इशारे पर नखरे दिखा रहे शिंदे एकनाथ शिंदे की नाराजगी की खबरों पर शिवसेना (उद्धव) गुट के नेता संजय राउत ने टिप्पणी की। उन्होंने मंगलवार को कहा कि महाराष्ट्र के कार्यवाहक मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ‘दिल्ली में बैठी महाशक्ति’ के समर्थन से BJP नेता देवेंद्र फडणवीस को लेकर नखरे और नाराजगी दिखा रहे हैं।
शिंदे ने 6 महीने CM बनने का रखा था प्रस्ताव BJP में दैनिक भास्कर के सोर्सेज ने बताया कि शिंदे ने अपनी आखिरी कोशिश 28 नवंबर को दिल्ली में अमित शाह के सामने की। शिंदे ने शुरू के 6 महीने खुद को CM बनाए जाने का प्रस्ताव रखा। गृह मंत्री ने इसे ये कहते हुए खारिज कर दिया कि किसी सरकार में 6 महीने का CM बनाने का फॉर्मूला नहीं रहा है।
हालांकि, अमित शाह ने कहा कि कुछ दिन फडणवीस को काम करने दीजिए, उसके बाद आपके लिए भी गठबंधन ने अच्छा सोचा है। इसके बाद शिंदे को शाह की बात माननी पड़ी। शिंदे के पास अब ढाई साल बाद का ऑप्शन बचा है। हालांकि, हमारे सोर्स के मुताबिक अब तक BJP के किसी नेता ने उन्हें लिखित या मौखिक भरोसा नहीं दिया है।
शिंदे को मिला था महायुति का संयोजक बनने का ऑफर शिंदे को CM बनने का कोई आश्वासन नहीं मिला था। केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने 25 नवंबर को ये बात कन्फर्म भी की। उन्होंने कहा था कि महायुति के सरकार बनाने पर एकनाथ शिंदे को CM बनाने की कोई बात नहीं हुई थी।
रामदास आठवले ने बताया कि BJP आलाकमान ने शिंदे को मुख्यमंत्री नहीं बनने की एवज में महायुति का संयोजक बनाने का ऑफर दिया था, लेकिन शिंदे ने इसे ठुकरा दिया। आठवले ने कहा कि शिंदे को केंद्र में मंत्री बनने का प्रस्ताव भी दिया था। शिंदे ने महाराष्ट्र से बाहर जाने से इनकार कर दिया।
उन्होंने कहा कि बैठक में अमित शाह ने शिंदे को बता दिया था कि महाराष्ट्र में इस बार BJP का मुख्यमंत्री बनेगा। वे अब भी चाहें तो महायुति के अध्यक्ष बन सकते हैं और हम भी यही चाहते हैं कि वे महायुति को एकजुट करने का काम करें।
शिवसेना के बिना भी BJP सरकार बनाने की स्थिति में संख्या बल की बात करें तो BJP के पास 132 विधायक हैं। इसके अलावा 13 विधायक ऐसे हैं, जो BJP में रहे हैं, लेकिन उन्हें शिवसेना के टिकट पर चुनावी मैदान में उतारा गया था। एक इशारे पर वे BJP के साथ आने को तैयार हैं।
इसके अलावा 5 निर्दलीय और अजित पवार के 41 विधायक पहले ही बिना शर्त BJP को समर्थन दे चुके हैं। ऐसे में BJP के पास 191 विधायक हैं, जो बहुमत के 145 के आंकड़े से बहुत ज्यादा हैं।
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इतनी मजबूत पोजिशन की वजह से BJP को अब शिवसेना की उतनी जरूरत नहीं है, जितनी चुनाव से पहले थी। यही वजह है कि BJP मुख्यमंत्री और गृह मंत्रालय किसी भी हालत में उन्हें नहीं देने वाली है। हालांकि, सम्मानजनक पोर्टफोलियो के नाम पर एकनाथ शिंदे की पार्टी को राजस्व और शहरी विकास मंत्रालय दिया जा सकता है।