मालपुरा में 6 मोहल्ले हैं, जहां 1992 से राजस्थान पुलिस की आरएसी बटालियन की परमानेंट चौकी बनी हुई है। हर दिन 24 घंटे 4 आरएसी जवान उन 6 मोहल्ले की हर एक्टिविटी पर नजर रखते हैं, जो संवेदनशील हैं। इसके अलावा भी शहर की 5 अन्य जगहों पर दो-दो आरएसी जवानों की ड्यूटी लगाई हुई है।
दरअसल, साल 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद देश भर में दंगे भड़क गए थे। इन दंगों की चपेट में राजस्थान का शांत शहर मालपुरा भी आ गया था। इससे पहले तक यहां सभी जाति धर्म के लोग प्रेम सदभाव से रहते थे। अलग-अलग धर्म और मजहब होने के बाद भी लोगों ने अपने घर आस-पास बनाए हुए थे।
लेकिन 1992 के दंगों में सबसे ज्यादा जानमाल का नुकसान भी इन्ही इलाकों में हुआ। यहां 26 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। सैकड़ों घायल हुए थे। कई-कई दिनों तक लोगों को छिप-छिपकर अपनी जान बचानी पड़ी। महिलाओं- बच्चों और बूढ़ों तक पर दंगाइयों को दया नहीं आई।
हर समय लोगों को एक-दूसरे से जान का डर सताने लगा। लोग एक-दूसरे के जानी दुश्मन बन गए थे। ऐसे में तत्कालीन सरकार ने एहतियातन यहां कानून व्यवस्था के तहत शांति बनाए रखने के लिए संवेदनशील इलाकों में 24 घंटे के लिए पुलिस जाब्ते की तैनाती कर दी।
ये इलाके थे- मालपुरा के जामा मस्जिद, दादाबाड़ी के सामने, टोड़ा रोड, कैलाश माली के घर के पास, रेगर मौहल्ले और मालपुरा कस्बा चौकी। पहले यहां आरएसी की तैनाती टेंपररी थी। लेकिन इंटेलिजेंस इनपुट और छोटी-छोटी बात पर यहां भड़कने वाले धार्मिक उन्माद को देखते हुए सरकार ने इस चौकी और वहां तैनात जवानों की ड्यूटी को परमानेंट कर दिया। इसके अलावा भी 5 और जगहों पर भी 2 आरएसी जवानों की टीम द्वारा शहर में तैनाती की गई थी।
हमने तो सोचा आज हमारा अंत आ गया है। हम सभी एक तहखाने के अंदर ओट में दुबक कर छिप गए थे। उस दिन दंगाइयों ने हमारे घर में आग लगा दी थी। आस-पड़ोस के और भी कई घरों को आग के हवाले कर दिया गया था। जब तक पुलिस वहां पहुंची और दंगाई भागे तब तक तो पूरे मौहल्ले में मातम का माहौल हो गया था। हर और खून खराबा और जलती राख की निशानियां बची थी। उस दिन हम तो जैसे-तैसे बच गए, लेकिन कुछ ही घंटों में दंगाइयों ने 12 लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी थी।
इसके बाद भी हर साल यहां छुटपुट धार्मिक उन्माद की घटनाएं होती रही। इसी कारण से पुलिस ने हमारे घर के बाहर ही पुलिस पहरा तैनात कर दिया था। आज 32 साल बाद भी वहां 24 घंटे पुलिस पहरा देती है। हमने सुरक्षा के चलते अब वहां रहना बंद कर दिया है। हमारे जैसे कई अन्य परिवारों ने भी वहां घर छोड़ दिया है। कई परिवार मकान बेचकर बाहर चले गए हैं।
मालपुरा थानाधिकारी चेनाराम बेड़ा ने जानकारी दी कि इलाके में पूरी तरह से अमनचैन बना हुआ है। फिलहाल क्षेत्र में 6 इलाकों जामा मस्जिद, दादाबाड़ी के सामने, टोडा रोड, रेगर पोस्ट और कस्बा चौकी के अलावा कैलाश माली के घर पर भी चौकी है। सभी चौकियों में 4-4 जवान तैनात रहते हैं। इसके अलावा भी शहर में 5 अन्य जगहों पर भी 2-2 आरएसी जवानों को तैनात किया जाता है।
कैसे एक हत्या के बाद भड़क गए थे मालपुरा में दंगे?
मालपुरा का रहने वाला कैलाश माली साल 1992 में मालपुरा में हुए दंगों के मामले में 13 आरोपियों में शामिल था और बजरंग दल का अध्यक्ष था। पत्नी सेवती देवी बीजेपी से नगर पालिका उपाध्यक्ष थी। कैलाश को 1992 के मामले में 4 साल बाद जमानत मिली थी। वो मालपुरा थाने का ‘ए’ श्रेणी का हिस्ट्रीशीटर था, जिसके खिलाफ तब 18 मामले चल रहे थे। वर्ष 2000 में कैलाश की हत्या के बाद कस्बे में दंगे भड़कने लग गए थे। अलग-अलग जगहों पर 11 और लोगों को इन दंगों में मौत के घाट उतार दिया गया।
दंगाइयों की भीड़ ने पत्नी और भाभी के साथ घर आ रहे किसान हरिराम की बेरहमी से हत्या कर दी थी। सगाई समारोह में शामिल होने के बाद डिग्गी-कल्याणजी के दर्शनों के लिए टोड़ा रोड से कमांडर जीप में जा रहे झालरापाटन के प्रतिष्ठित व्यवसायी मोहनलाल कुमावत के परिवार पर हमला बोल दिया। इस हमले में जितेंद्र, मोहन, संजय और छीतर कुमावत को मौत के घात उतार दिया गया था।
इसके बाद दंगाइयों ने मालपुरा इलाके में खेत में ट्रैक्टर चला रहे सलीम और मोहम्मद अली को मार डाला। वहीं पास में ही बकरियां चरा रहे दो बच्चे बंटी और जुम्मा भी भीड़ का शिकार बन गए थे। दोनों बच्चों को बड़ी ही निर्दयता से मारा गया था। मालपुरा दंगों की आग पास के गांव टोरडी सागर तक पहुंच गई थी। कैलाश की हत्या के 36 घंटे बाद दंगाइयों की भीड़ ने टोरडी सागर गांव में एक महिला को जिंदा जला दिया। इस दौरान वहां मौजूद चार बच्चे भी झुलस गए थे। वहां एक धार्मिक स्थल में भी आग लगा दी गई थी।