समय बदलने के साथ सियासत में सादगी के मायने भी बदलते जा रहे हैं। नेताओं का प्रेजेंटेबल दिखना आजकल एक सामान्य बात हो गई है। सरकार में पहली बार बड़े पद पर पहुंचे एक नेताजी ने हमेशा स्टाइलिस्ट और प्रेजेंटेबल लुक में रहना कुछ ज्यादा ही प्रायोरिटी में ले लिया है। यही वजह है कि नेताजी बार बार स्टाइल स्टूडियो में सजने संवरने जाते हैं।
स्टूडियो वाले ने नेताजी की यह कमजोर नस पकड़ ली है। जब भी नेताजी टीवी पर आते हैं तो स्टाइलिस्ट अपना व्यू पॉइंट भी नेताजी को बताता है। स्टाइलिस्ट जैसे ही नेताजी के लुक में कमी बताता है तो नेताजी तुरंत उसके सैलून पर दौड़ पड़ते हैं। अब यह काम कोई परोपकार में तो होता नहीं अच्छा खासा बिल बन जाता है और नेताजी के इस शौक ने स्टाइलिस्ट की दुकान को शोरूम में तब्दील कर दिया है। इससे अब स्टाइलिस्ट के VVIP ग्राहकों की कतार लंबी होती जा रही है।
विपक्ष के संगठन मुखिया की सतर्कता की चर्चा
विपक्षी पार्टी के संगठन मुखिया का सत्ताधारी पार्टी के वैचारिक संगठन से दुराव जग जाहिर है। पिछले दिनों एक पोस्टर का विमोचन करने के लिए कुछ नेता और कार्यकर्ता विपक्षी पार्टी के मुख्यालय में जुटे। काफी इंतजार करने के बाद भी जब संगठन मुखिया ने विमोचन नहीं किया तो पड़ताल शुरू हुई।
जब संगठन मुखिया तक बात पहुंचाई गई तो वहां मौजूद नेताओं से कहा गया कि उनके बीच सत्ता वाली पार्टी के वैचारिक संगठन का एक आदमी है ,जब तक यह आदमी यहां रहेगा वह विमोचन नहीं करेंगे। अब मरता क्या नहीं करता ,विमोचन करने वालों ने तुरंत उस नेता को रवाना किया, संगठन मुखिया जी ने फिर कंफर्म करवाया कि नेता चला गया है उसके बाद ही उन्होंने विमोचन किया। संगठन मुखिया की यह सतर्कता चर्चा का विषय बनी हुई है।
राजधानी के नेता की विधायक और प्रत्याशी के बीच रस्साकशी
जिस पार्टी की सत्ता हो और उसके टिकट पर कोई उम्मीदवार चुनाव हार जाए तो उसकी पीड़ा वही जान सकता है जो इसे गुजरा हो। राजधानी के एक नेताजी भी इसी पीड़ा से गुजर रहे हैं, लेकिन उनका दिल अब भी नहीं मानता कि वह हारे हुए उम्मीदवार हैं।
इसलिए उन्होंने अपनी गाड़ी पर बड़े-बड़े अक्षरों में विधायक लिख रखा है और कोई टोके नहीं इसके लिए सावधानी के तौर पर बहुत छोटे अक्षरों में प्रत्याशी लिख रखा है। दोनों को मिलने पर शब्द बनता है विधायक प्रत्याशी ,लेकिन दूर से देखने पर वह विधायक ही नजर आता है। नेताजी के साथ भी सियासी जीवन में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है।
मंत्री बनने के लिए कौन कर रहा है लॉबिंग
सत्ता वाली पार्टी में उपचुनाव जीतने के बाद जोश उफान पर है । सत्ता में भागीदारी को तैयार बैठे नेताओं की उम्मीदें एक बार फिर जोर मारने लगी है। हर दूसरा विधायक मंत्री बनने के लिए जोर लगा रहा है और इसके लिए अपने सियासी आकाओं के जरिए गुप्त रूप से लॉबिंग भी शुरू कर दी है।
खुद की लॉबिंग के साथ-साथ कई बड़े नेता अपने विरोधियों का पता साफ करने की कोशिश में भी जी जान से जुटे हैं। विरोधी को कुछ नहीं बनने देने के लिए भी पूरा जोर लगा रहे हैं। अब मंत्रिमंडल में फेरबदल विस्तार होगा तब होगा लेकिन इसके लिए न थमने वाली मैराथन कोशिश जारी है।
महिला अफसर की धमकियों से परेशान
सत्ता और ब्यूरोक्रेसी में पावर गेम को समझना आसान नहीं होता है। जो इस गेम को समझते हैं, उनकी बात कुछ निराली है। राजधानी में एक दफ्तर के अफसर जूनियर महिला अफसर की धमकियों से परेशान हैं। महिला अफसर खुद को बड़े लोगों से संपर्क होने की धौंस देती हैं।
महिला अफसर को लेकर सीनियर्स और दफ्तर के बॉस तंग आ गए तो जो बात मौखिक थी वो कागजों में आ गई। बात दफ्तर से आगे तक पहुंच गई है, लेकिन एक्शन क्या होना है, इसी की चर्चा है। जानकार तो यही कह रहे हैं कि चर्चा के अलावा कुछ होना जाना नहीं है।
नेताजी और मंत्री क्यों हुए परेशान
सत्ता में बैठे नेताओं का समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। कब कौन किसकी शिकायत कर दे और कब नंबर कम हो जाए कहा नहीं जा सकता। सत्ताधारी एक नेताजी और एक मंत्री इन दिनों परेशानी से गुजर रहे हैं। मंत्री इस बात से परेशान हैं कि उनके समीकरण बिगड़ गए, किसी ने उनकी शिकायत भी कर दी।
समीकरण ऐसे बन रहे हैं कि उपचुनाव की जीत के बाद उनकी कुर्सी पर उनसे प्रबल दावेदार आ गए हैं। मंत्री ने अपने नजदीकियों से इस परेशानी का इजहार किया और संभावित खतरे के बारे में भी बता दिया है। दूसरे नेताजी की तकलीफ कुछ नहीं मिलने की है, शपथ से बाल बाल बचे नेताजी को अब भी आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला।