नागौर में रिटायर्ड टीचर ने अपने दोहिते की शादी में दो करोड़ रुपए का मायरा (भात) भरा। 250 कारों के काफिले के साथ परिवार सभी रस्मों को निभाने पहुंचा। इस मौके पर 1 करोड़ 1 लाख रुपए नकद दिए। सोने-चांदी के गहनों के साथ ही मायरे में प्लॉट भी दिया।
दरअसल, नागौर में डेह तहसील के बुरड़ी गांव के रहने वाले रिटायर्ड शिक्षक रामनारायण झाड़वाल की बेटी संतोष के बेटे रामेश्वर की शनिवार (7 दिसंबर) को शादी हुई थी। इसी दिन सुबह मायरा की रस्म पूरी की गई। रामनारायण के साथ उनके दो बेटे डॉ. अशोक और डॉ. रामकिशोर झाड़वाल भी कारों के काफिले के साथ समारोह स्थल पहुंचे थे।
पूरे परिवार के साथ निभाई मायरा की रस्म रामनारायण की बेटी संतोष और दामाद मनीराम ढाका नागौर के मालगांव में ढाकों की ढाणी में रहते हैं। संतोष-मनीराम के बेटे की शादी में नाना और मामा ने पूरे परिवार के साथ मायरा की रस्म निभाई। इस मौके पर समारोह स्थल पर मौजूद गांव की सभी बहन-बेटियों को कपड़े भी दिए गए।
परिवार के मित्र और साहित्यकार पवन पहाड़िया ने बताया- वर्तमान में किसी के पास पैसा होना बड़ी बात नहीं है, बड़ी बात है दिल का बड़ा होना। नागौर में रामनारायण के परिवार ने यही चरितार्थ किया। भांजे के विवाह से पहले पूरा परिवार भात भरने आया।
बुरड़ी निवासी रामनारायण झाड़वाल का बड़ा बेटा डॉ. रामकिशोर ऑस्ट्रेलिया में नर्सिंग ऑफिसर है। छोटा बेटा डॉ. अशोक झाड़वाल नागौर जिला मुख्यालय के जेएलएन अस्पताल में एमडी (मेडिसिन) के पद पर कार्यरत है।
परिजन ने बताया- मारवाड़ में मायरा भरने कोई भी परिवार जिस गांव में जाता है, उस गांव की सरहद में घुसने से पहले सीमा पर खेजड़ी के पेड़ को भी बेटी की तरह चुनरी ओढ़ाई जाती है। इस परंपरा के बिना उस गांव में प्रवेश नहीं करते हैं। प्राचीन काल से चली आ रही इस परंपरा को भी भात भरने से पहले निभाया गया।
क्या होता है मायरा बहन के बच्चों की शादी होने पर ननिहाल पक्ष की ओर से मायरा भरा जाता है। इसे सामान्य तौर पर भात भी कहते हैं। इस रस्म में ननिहाल पक्ष की ओर से बहन के बच्चों के लिए कपड़े, गहने, रुपए और अन्य सामान दिया जाता है। इसमें बहन के ससुराल पक्ष के लोगों के लिए भी कपड़े और जेवरात आदि होते हैं।
ये है मान्यता मायरा की शुरुआत नरसी भगत के जीवन से हुई थी। नरसी का जन्म गुजरात के जूनागढ़ में करीब 500 साल पूर्व हुमायूं के शासनकाल में हुआ था। नरसी जन्म से ही गूंगे-बहरे थे। वो अपनी दादी के पास रहते थे। उनके भाई-भाभी भी थे। भाभी का स्वभाव कड़क था। एक संत की कृपा से नरसी की आवाज वापस आ गई थी। उनका बहरापन भी ठीक हो गया था। नरसी के माता-पिता गांव की एक महामारी का शिकार हो गए थे। नरसी की शादी हुई, लेकिन कम उम्र में ही उनकी पत्नी का निधन हो गया। नरसी का दूसरा विवाह कराया गया था।
समय बीतने पर नरसी की बेटी नानीबाई का विवाह अंजार नगर में हुआ था। इधर, नरसी की भाभी ने उन्हें घर से निकाल दिया था। नरसी श्रीकृष्ण के अटूट भक्त थे। वे उन्हीं की भक्ति में लग गए थे। भगवान शंकर की कृपा से उन्होंने ठाकुर जी के दर्शन किए थे। इसके बाद तो नरसी ने सांसारिक मोह त्याग दिया और संत बन गए थे। उधर, नानीबाई ने पुत्री को जन्म दिया और पुत्री विवाह लायक हो गई थी। लड़की के विवाह पर ननिहाल की तरफ से भात भरने की रस्म के चलते नरसी को सूचित किया गया था। नरसी के पास देने को कुछ नहीं था। उसने भाई-बंधु से मदद की गुहार लगाई, मदद तो दूर कोई भी चलने तक को तैयार नहीं हुआ था। अंत में टूटी-फूटी बैलगाड़ी लेकर नरसी खुद ही बेटी के ससुराल के लिए निकल पड़े थे। बताया जाता है कि उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण खुद भात भरने पहुंचे थे।
देखिए… मायरा से जुड़ी फोटोज