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SMS ट्रॉमा सेंटर में अब दूसरी यूनिट्स बंद होंगी:सिर्फ एक्सीडेंट केसों को मिलेगी प्राथमिकता; ओपीडी में आने वाले मरीज नहीं होंगे भर्ती

जयपुर के एसएमएस ट्रॉमा सेंटर में अब सिर्फ ट्रोमा (दुर्घटना वाले) मरीजों को ही प्राथमिकता दी जाएगी। एसएमएस प्रशासन यहां संचालित होने वाली दूसरी यूनिट्स को अब बंद करने पर विचार कर रहा है।

एसएमएस ट्रॉमा सेंटर के बेड पर कई मरीज ओपीडी से आकर भर्ती होते हैं और लंबे समय तक भर्ती रहते हैं। इन मरीजों को अब एसएमएस ट्रॉमा सेंटर में भर्ती नहीं किया जाएगा।

उत्तर भारत का सबसे बड़ा ट्रॉमा सेंटर, 240 से ज्यादा बेड और 7 ओटी जयपुर का एसएमएस ट्रॉमा सेंटर वर्तमान में राजस्थान में ही नहीं, बल्कि उत्तर भारत का सबसे बड़ा ट्रॉमा सेंटर है। यहां एक साथ 240 से ज्यादा बेड और 7 ऑपरेशन थिएटर (ओटी) की व्यवस्था है। लेकिन इस सेंटर में ट्रॉमा के अलावा दूसरे डिपार्टमेंट की यूनिट भी संचालित हो रही है। बढ़ते एक्सीडेंट केस और घायलों की संख्या देखते हुए अब इसकी व्यवस्थाओं को बदला जाएगा।

ट्रॉमा सेंटर में अब एक्सीडेंट केसों को ही प्राथमिकता मिलेगी।
ट्रॉमा सेंटर में अब एक्सीडेंट केसों को ही प्राथमिकता मिलेगी।

कई शहरों से रेफर होकर आते हैं मरीज वर्तमान में इस ट्रॉमा सेंटर में जयपुर, भरतपुर संभाग के जिलों और अन्य दूसरे संभाग के जिलों के अलावा यू​पी से आगरा, मथुरा, मध्य प्रदेश से ग्वालियर समेत अन्य शहरों के केस भी रेफर हो रहे हैं। इसके कारण यहां मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

इस कारण यहां कई बार इन ट्रॉमा मरीजों को वार्ड (पॉलीट्रॉमा) में बेड नहीं मिलते। इस कारण मरीजों को परेशानी होती है। इसे देखते हुए अब एसएमएस प्रशासन यहां संचालित होने वाली दूसरी यूनिट्स को बंद करने पर विचार कर रहा है।

ये ​यूनिट्स अभी चलती हैं यहां

डिपार्टमेंट बेड
ऑर्थोपेडिक 80
न्यूरोसर्जरी 40
प्लास्टिक सर्जरी 20

वर्तमान में यहां न्यूरोसर्जरी, ऑर्थोपेडिक और प्लास्टिक सर्जरी डिपार्टमेंट की यूनिट चलती हैं। इन तीनों यूनिट्स के करीब 140 बेड हैं। इन बेड पर कई मरीज ओपीडी से आकर भर्ती होते हैं और लंबे समय तक भर्ती रहते हैं। जबकि पोली ट्रॉमा वार्ड के लिए महज 50 बेड और मास केज्युअल्टी वालों के लिए 18 बेड हैं। वहीं 16 बेड ऑब्जर्वेशन के लिए रखे हैं।

साल 2016 के बाद से चलने लगी यूनिट

एसएमएस के डॉक्टरों के मुताबिक जब ये ट्रॉमा सेंटर बना था, तब यहां सभी बेड केवल ट्रॉमा मरीजों के लिए ही थे। तब उन्हीं केसों को भर्ती किया जाता था। लेकिन साल 2016 के बाद यहां धीरे-धीरे दूसरी यूनिट्स के वार्ड संचालित होने शुरू हो गए। क्योंकि मल्टीपल इंजरी वाले केस में मरीज को पोलीट्रोमा वार्ड में रखा जाता है।

लेकिन जब हड्डी टूटने या एक्सीडेंट में चमड़ी के खराब होने या अंगों के कटने अथवा स्पाइन, ब्रेन इंजरी के अलग-अलग केस (सिंगल स्पेशियलिटी) आने पर मरीजों को अलग-अलग यूनिट के वार्ड ऑर्थो, प्लास्टिक और न्यूरोसर्जरी में शिफ्ट करना शुरू कर दिया।

जरूरत के हिसाब से करेंगे सुधार

ट्रॉमा सेंटर के नोडल अधिकारी डॉ. बी.एल. यादव ने बताया- “पिछले कुछ दिनों से जिस तरह के एक्सीडेंट केस आ रहे हैं। उसे देखकर हम इस स्थिति को लेकर गंभीर हैं। जल्द ही प्रिंसिपल-अधीक्षक से चर्चा कर ट्रॉमा सुविधाओं में जरूरत के हिसाब से सुधार किए जाएंगे।

Kashish Bohra
Author: Kashish Bohra

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