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बाबर की बारूद के सामने तलवार से लड़े थे सांगा:पहली बार तोपों ने दागे थे गोले; मुस्लिम राजा ने कहा था- मजहब से पहले मेरा मुल्क

आज (12 अप्रैल) राणा सांगा की जयंती है। बीते दिनों राणा सांगा एक बयान के कारण चर्चा में रहे। आरोप लगाए गए कि राणा सांगा ने बाबर को दिल्ली पर आक्रमण का न्योता दिया था। इस बयान का देशभर में विरोध हुआ।

भरतपुर की इतिहासकार डॉ. सुधा सिंह बताती हैं- मेवाड़ राज्य के राणा सांगा को लेकर यह बयान बेबुनियाद है। सांगा ने बाबर को बुलाया नहीं, बल्कि उसका प्रस्ताव ठुकराया था। इतना ही नहीं, संयुक्त सेना के साथ खानवा (भरतपुर) में बाबर की सेना से युद्ध किया था। भारत में लड़ा जाने वाला यह पहला युद्ध था, जिसमें आक्रमणकारी ने बारूद का इस्तेमाल किया था। तोपों के सामने महाराणा सांगा की सेना तलवारों से लड़ी और पराजित हुई।

राजपूताना को एकजुट करने के लिए राणा सांगा ने 100 से ज्यादा लड़ाइयां लड़ीं। इन युद्धों में उन्होंने एक आंख, एक हाथ और एक पैर खो दिया था। कुल मिलाकर उनके शरीर पर 80 घाव थे।

पहले देखें राणा सांगा की यह तस्वीर…

सर्च करने पर राणा सांगा की इसी तरह की तस्वीरें मिलती हैं, जिनमें एक आंख और हाथ नहीं दिखता। पैर मुड़ा हुआ दिखता है।
सर्च करने पर राणा सांगा की इसी तरह की तस्वीरें मिलती हैं, जिनमें एक आंख और हाथ नहीं दिखता। पैर मुड़ा हुआ दिखता है।

राजपूताना को एक करने 100 से ज्यादा युद्ध करने वाले राणा सांगा इतिहासकार डॉ. सुधा सिंह न बताया- महाराणा सांगा मेवाड़ के राजा रायमल के तीसरे बेटे थे। उनका जन्म 12 अप्रैल 1482 को हुआ था। 27 साल की उम्र में 1509 में उन्होंने मेवाड़ की गद्दी संभाली। इसके बाद राजपूताना को एक करने के लिए उन्होंने 100 से ज्यादा लड़ाइयां लड़ी। इन्हीं लड़ाइयों में उनके शरीर पर 80 घाव लगे। सांगा ने इन युद्धों मेंं एक पैर, एक हाथ और एक आंख खो दी थी।

दिल्ली-आगरा में उस वक्त इब्राहिम लोदी की हुकूमत थी। इतिहास के मुताबिक, 1523 में इब्राहिम लोदी के चाचा अलाउद्दीन लोदी, पंजाब के गर्वनर दौलत खान लोदी और आलम खान लोदी ने ही तैमूर वंश के बाबर को भारत पर आक्रमण का निमंत्रण दिया था।

भरतपुर के खानवा में बाबर और सांगा की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ था। भारत में पहली बार बारूद का इस्तेमाल इसी मैदान पर किया गया था।
भरतपुर के खानवा में बाबर और सांगा की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ था। भारत में पहली बार बारूद का इस्तेमाल इसी मैदान पर किया गया था।

बाबर मध्य एशिया की फरगना घाटी (उज्बेकिस्तान) से काबुल होते हुए भारत आया था। 21 अप्रैल 1526 को पानीपत में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी और बाबर की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ और इसमें बाबर की जीत हुई। इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली-आगरा पर बाबर ने कब्जा कर लिया। अब उसका सबसे बड़ा दुश्मन था राणा सांगा।

बाबर तैमूर वंशी आक्रमणकारी था। उसने पानीपत में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराया था।
बाबर तैमूर वंशी आक्रमणकारी था। उसने पानीपत में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराया था।

इब्राहिम लोदी को दो बार हरा चुके थे सांगा, इसलिए बाबर चाहता था मदद इतिहासकार डॉ. सुधा सिंह बताती हैं- दिल्ली का सुल्तान इब्राहिम लोदी और सांगा दुश्मन थे। दोनों अपनी-अपनी सीमा का विस्तार चाहते थे। 1517 में दोनों (लोदी-सांगा) के बीच खतौली (पीपलवा, कोटा) का युद्ध हुआ, जिसमें सांगा ने लोदी को बुरी तरह हराया। 1518 में बाड़ी (धौलपुर) में दूसरी बार लोदी को सांगा ने हराया।

दोनों युद्ध चित्तौड़ से करीब 450 किमी दूर लड़े गए। सांगा ने लोदी को उसके घर (आगरा) के पास आकर हराया था। ऐसे में उसकी सेना और राजपूती पराक्रम का लोहा बाबर मानता था। बाबरनामा में जिक्र मिलता है कि सांगा को बाबर भारत का सबसे शक्तिशाली राजा मानता था। उसने यहां खतौली और बाड़ी युद्धों का जिक्र किया था।

इब्राहिम लोदी दिल्ली का सुल्तान था। वह राणा सांगा का दुश्मन था। लोदी को पराजित करने के लिए बाबर ने सांगा से मदद मांगी लेकिन सांगा ने प्रस्ताव ठुकरा दिया।
इब्राहिम लोदी दिल्ली का सुल्तान था। वह राणा सांगा का दुश्मन था। लोदी को पराजित करने के लिए बाबर ने सांगा से मदद मांगी लेकिन सांगा ने प्रस्ताव ठुकरा दिया।

इब्राहिम लोदी को हराने लिए उसके रिश्तेदारों ने बाबर को निमंत्रण पत्र भेजा था इतिहासकार डॉ. सुधा सिंह न बताया- लोदी से युद्ध में सुल्तान के दुश्मन रिश्तेदारों ने सांगा का साथ दिया था। उन्होंने ही बाबर को आश्वस्त किया था कि सांगा के नेतृत्व में आगरा की ओर से हम लड़ेंगे और दिल्ली की ओर से वह (बाबर) आक्रमण करे। लेकिन सांगा ने यह स्वीकार नहीं किया। इसलिए बाबर सांगा को दुश्मन मानता था।

सांगा ने पानीपत के युद्ध में बाबर का साथ नहीं दिया। हालांकि जीत बाबर की हुई। फिर भी ताकतवर होने के कारण सांगा बड़ा खतरा था। इतिहास में एक तथ्य यह भी मिलता है कि बाबर और सांगा में समझौता हुआ था। इसके तहत बाबर दिल्ली जीतने के बाद काल्पी, बयाना और धौलपुर पर कब्जा नहीं करेगा। फिर भी उसने कब्जा कर समझौते का उल्लंघन किया।

भरतपुर के खानवा में राणा सांगा का स्मारक। जहां राजा मेदनी राय और हसन खां मेवाती की भी प्रतिमाएं हैं।
भरतपुर के खानवा में राणा सांगा का स्मारक। जहां राजा मेदनी राय और हसन खां मेवाती की भी प्रतिमाएं हैं।

बयाना में बाबर की सेना हारी, कुछ दिन बाद खानवा में हुआ युद्ध इतिहासकार डॉ. सुधा सिंह ने बताया- 21 फरवरी 1527 को बयाना में बाबर और सांगा की सेनाएं टकराईं, जिसमें राणा सांगा की जीत हुई। बयाना में चोट खाने के बाद बाबर ने खानवा युद्ध से पहले अपनी सेना का मनोबल बढ़ाने के लिए कई रणनीतियां अपनाईं। उसने शराब और अफीम पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया और सांगा के खिलाफ जिहाद का नारा दिया।

कुछ ही दिन बाद 16 मार्च 1527 को खानवा (भरतपुर) में दोनों सेनाएं आमने-सामने हुईं और राणा सांगा की हार हुई। इस युद्ध में सांगा बुरी तरह घायल हुए। कहा जाता है कि खानवा युद्ध में घायल सांगा दौसा के रास्ते मेवाड़ की तरफ निकले। दौसा के बसवा में जहां उन्होंने अपने घावों का उपचार कराया उस जगह को सांगा का चबूतरा कहा जाता है।

खानवा युद्ध के लगभग 11 महीने बाद 30 जनवरी 1528 में राणा सांगा का निधन हो गया। उनकी समाधि मांडलगढ़ में है।

दौसा के बसवा कस्बे में राणा सांगा का यह चबूतरा है। कहा जाता है कि खानवा युद्ध में मिले घावों का यहां सांगा ने उपचार कराया था।
दौसा के बसवा कस्बे में राणा सांगा का यह चबूतरा है। कहा जाता है कि खानवा युद्ध में मिले घावों का यहां सांगा ने उपचार कराया था।

सांगा की सेना में मारवाड़, आमेर, ग्वालियर, अजमेर, हसन खां मेवाती, चंदेरी, इब्राहिम लोदी का भाई महमूद लोदी, किसान जाट संगठन, राजा मेदनी राय शामिल थे।

बाबरनामा में लिखा- सांगा ने मुझे धोखा दिया राजस्थान के इतिहासकार गोपीनाथ शर्मा की किताब मेवाड़ एंड मुगल एंपरर्स (1526-1707) के मुताबिक- सांगा ने बाबर के पास कभी कोई दूत नहीं भेजा, बल्कि खुद बाबर ने सांगा से मदद मांगी थी। मेवाड़ राजघराने के पुरोहित हर दिन के घटनाक्रम का बुलेटिन लिखा करते थे। इतिहास में इस राजपूत वर्जन को ऑथेंटिक सोर्स माना जाता है। इसमें भी दिल्ली के सुल्तान (इब्राहिम लोदी) को हराने के लिए बाबर से मदद मांगने का जिक्र नहीं मिलता।

हालांकि बाबरनामा में यह जिक्र मिलता है कि सांगा के दूत आए थे, जिन्होंने कहा था कि बाबर इब्राहिम लोदी पर दिल्ली की तरफ से हमला करे और सांगा आगरा की तरफ से हमला करें। लेकिन सांगा ने धोखा दिया और मदद नहीं की।

राणा सांगा की सीमा गुजरात के कुछ भाग, मेवाड़, मारवाड़ से लेकर उत्तर पूर्व में आगरा के पास (खानवा, बाड़ी, बयाना) तक थी। उस समय मुगल शासन की राजधानी आगरा थी। तस्वीर खानवा (भरतपुर) की है।
राणा सांगा की सीमा गुजरात के कुछ भाग, मेवाड़, मारवाड़ से लेकर उत्तर पूर्व में आगरा के पास (खानवा, बाड़ी, बयाना) तक थी। उस समय मुगल शासन की राजधानी आगरा थी। तस्वीर खानवा (भरतपुर) की है।

जब एक मुसलमान राजा ने कहा- मेरे लिए देश प्रथम…

वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कल्याण का कहना है- भरतपुर से धाैलपुर जाने वाली रोड पर खानवा का मैदान है। खानवा का युद्ध हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक भी है। बाबर को जब पता चला कि सांगा की ओर से हसन खां मेवाती भी लड़ रहा है तो उसने धर्म का पासा फेंका।

बाबर ने राजा हसन खां मेवाती को पत्र में लिखा- बाबर भी कलमा-गो (मुस्लिम) है और हसन खां मेवाती भी। इस तरह हम भाई हैं। आपको चाहिए कि बाबर का साथ दें।

जवाब में हसन खां मेवाती ने बाबर को संदेश भिजवाया- बेशक हसन खां मेवाती कलमा-गो है। मगर मेरे लिए मेरा मुल्क (भारत) पहले है। यही मेरा ईमान है। तुम विदेशी हाे और मेरे मुल्क को रौंदने-लूटने आए हो। मैं अपने मुल्क के लिए लड़ाई लडूंगा। हसन खां मेवाती राणा सांगा के साथ मिलकर लड़ेगा।

हसन खां मेवाती जादौन राजपूतों के वंशज थे। उनके पूर्वज राजा नाहर सिंह इस्लाम धर्म ग्रहण करने पर खान जादौन हाे गए थे। बाद में यह अपभ्रंश होकर खानजादा हाे गया। मेवात के अंतिम खानजादा राजपूत शासक हसन खां मेवाती थे। बाद में मेवात को मुगल साम्राज्य में एकीकृत कर दिया गया।

खानवा स्मारक पर सांगा और मेदनी राय के साथ हसन खां मेवाती की भी प्रतिमा है..

भरतपुर के खानवा में राणा सांगा, राजा मेदनी राय और राजा हसन खां मेवाती का स्मारक।
भरतपुर के खानवा में राणा सांगा, राजा मेदनी राय और राजा हसन खां मेवाती का स्मारक।

कवि ने लिखा- फाड़ा खत गरजा मेवाती…

किशनगढ़ बास (अलवर) के कवि पद्मश्री सूर्यदेव सिंह बारेठ ने कविता के जरिए हसन खां मेवाती के देशप्रेम का वर्णन इन शब्दों में किया है-

बाबर का पैगाम लिए फुसलाने राजदूत आया मेवाती शीर्ष हसन खां को मजहबी संदेशा वह लाया फाड़ा खत गरजा मेवाती इस्लाम मजहब है मान लिया सौगंध वतन के दुश्मन को पहले मारूंगा ठान लिया दीवाने वतन परस्तों के संकल्प पृष्ठ खोलता हूं मैं खानवा गांव बोलता हूं

भरतपुर के खानवा में सांगा स्मारक पर यह कविता शिलालेख के तौर पर मिलती है।
भरतपुर के खानवा में सांगा स्मारक पर यह कविता शिलालेख के तौर पर मिलती है।
हसन खां मेवाती ने युद्ध में राणा सांगा का साथ दिया था।
हसन खां मेवाती ने युद्ध में राणा सांगा का साथ दिया था।
भरतपुर के खानवा में सांगा स्मारक पर यह कविता शिला लेख के तौर पर मिलती है।
भरतपुर के खानवा में सांगा स्मारक पर यह कविता शिला लेख के तौर पर मिलती है।
Kashish Bohra
Author: Kashish Bohra

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