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35 साल पुरानी सिंचाई बारी हाईकोर्ट ने बहाल की:हनुमानगढ़ के किसान के पक्ष में सुनाया फैसला, कोर्ट ने कहा-सरकार के आदेश गैरकानूनी

राजस्थान हाईकोर्ट ने हनुमानगढ़ के किसान हाकम राम के पक्ष में बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने उनकी 35 साल पुरानी सिंचाई बारी को रद्द करने के आदेश को गलत ठहराया। जस्टिस रेखा बोराणा ने इस संबंध में दो रिट याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए कहा कि 1987 से चली आ रही सिंचाई सुविधा को बिना ठोस कारण रद्द नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने सिंचाई विभाग के सभी गलत आदेशों को रद्द कर दिया और हाकम राम की 2 बीघा अनकमांड जमीन पर सिंचाई सुविधा जारी रखने का निर्देश दिया।

हाकम राम के पास 24 बीघा जमीन है, जिसमें 22 बीघा कमांड और 2 बीघा अनकमांड है। 1987 से उन्हें पूरी जमीन पर सिंचाई सुविधा मिल रही थी। 2006 में सरकार ने नियम बनाया कि 1970 से 1995 के बीच अनकमांड जमीन पर सिंचाई बारी लेने वालों की जमीन को कमांड में बदला जाएगा, लेकिन हाकम राम की 2 बीघा जमीन को इसमें शामिल नहीं किया गया। हनुमानगढ़ चक 11 झम्भर निवासी हाकमराम ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर ये जानकारी दी।

एक अन्य व्यक्ति ने की शिकायत- 2 बीघा जमीन पर सिंचाई अवैध

मोहम्मद इस्माइल नाम के व्यक्ति ने शिकायत की कि हाकम राम की 2 बीघा जमीन पर सिंचाई गलत है। इसके बाद 14 अक्टूबर 2022 को याचिकाकर्ता की किला नंबर 1 और 10 (पत्थर नंबर 155/312) की सिंचाई बारी रद्द कर दी गई, बिना उन्हें सुनवाई का मौका दिए। इन्हीं आदेशों को हाकमराम ने हाईकोर्ट में दो अलग-अलग याचिकाएं दायर कर चुनौती दी थी।

कोर्ट ने कहा कि 1987 से हाकम राम को सिंचाई सुविधा मिल रही थी और इसमें कोई धोखाधड़ी नहीं थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर जमीन को कमांड में बदलने में गलती हुई, तो इसके लिए किसान को सजा नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने विभाग को हाकम राम की जमीन पर सिंचाई सुविधा जारी रखने और नक्का इस्तेमाल करने की अनुमति देने का आदेश दिया।

हाईकोर्ट के फैसले के प्रमुख बिंदू

  • जस्टिस रेखा बोराणा ने अपने फैसले में कहा कि रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि हाकम राम को 1987 में सिंचाई बारी दी गई थी। तब से लेकर अब तक वे बिना किसी रुकावट के इस सुविधा का उपयोग कर रहे थे। पानी की पर्चियों से साबित होता है कि हाकम राम को उनकी पूरी 24 बीघा जमीन के लिए सिंचाई बारी मिली थी। 1992 में मोहम्मद इस्माइल ने इस बारी के खिलाफ शिकायत की थी, लेकिन तब अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की।
  • कोर्ट ने कहा कि यह जानने के लिए कि जमीन को सिंचाई मिल रही थी या नहीं, रबी और खरीफ फसलों की रिपोर्ट मांगी गई थी, लेकिन इसके बाद कोई दस्तावेज रिकॉर्ड में नहीं रखा गया। इससे साफ है कि उस समय अधिकारियों को हाकम राम की सिंचाई बारी रद्द करने का कोई कारण नहीं मिला। अगर जमीन को सिंचाई नहीं मिल रही होती, तो अधिकारी जरूर कुछ करते।
  • धोखाधड़ी का कोई सबूत नहीं: कोर्ट ने कहा कि यह समझ से परे है कि कथित रूप से धोखाधड़ी से जारी सिंचाई बारी किसी भी विभागीय प्राधिकारी या यहां तक कि किसी भी जल संघ द्वारा आपत्ति किए बिना लगभग 30 वर्षों तक जारी रही। यदि याचिकाकर्ता की ओर से कोई धोखाधड़ी की गई होती, तो 1993 में जब उस प्रभाव की शिकायत की गई थी, तब अधिकारियों द्वारा निश्चित रूप से कार्रवाई की गई होती। दिलचस्प बात यह है कि संबंधित जल संघ ने याचिकाकर्ता के पक्ष में सिंचाई बारी की निरंतरता के लिए सिफारिश की है और अनकमांड से कमांड में भूमि के परिवर्तन के लिए भी सिफारिश की है। जल संघ ने 28 फरवरी 2023 के अपने संचार में विशेष रूप से कहा है कि सिंचाई बारी वर्ष 1987 से जारी थी।
  • कोर्ट ने कहा – रिकॉर्ड पर ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह दिखाता हो कि 1987 में पालाराम के पक्ष में जारी सिंचाई बारी उनके द्वारा की गई किसी धोखाधड़ी या उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए किसी जाली दस्तावेज के कारण थी। जहां तक सक्षम प्राधिकारी द्वारा इसे अनुमोदित नहीं किए जाने का सवाल है, निश्चित रूप से याचिकाकर्ता को इसके लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
  • कमांड में परिवर्तन का अधिकार: याचिकाकर्ता की अनकमांड भूमि को राज्य सरकार के 6 जनवरी 2006 के आदेश के आधार पर तैयार की गई सूची में शामिल क्यों नहीं किया गया? निश्चित रूप से, याचिकाकर्ता की भूमि राज्य सरकार के उक्त आदेश द्वारा आवश्यक मानदंडों को पूरा करती थी। इसलिए उस समय तैयार की गई सूची में शामिल किया जाना चाहिए था। विभागीय अफसरों की किसी भी गलती या खामी के लिए किसी भी कृषक को दंडित नहीं किया जा सकता था।

विभाग के सभी आदेश निरस्त

जस्टिस बोराणा ने अपने आदेश में 23 व 25 जनवरी 2024, 21 व 22 जुलाई और 4 दिसंबर 2023 के आदेशों को रद्द कर दिया। विभाग को भी याचिकाकर्ता की अनकमांड 2 बीघा भूमि को पानी की बारी जारी रखने और पत्थर संख्या 155/312 के किला नंबर 1 और 2 के बीच स्थित नक्का का उपयोग करने से याचिकाकर्ता को नहीं रोकने का निर्देश दिया गया है।

Kashish Bohra
Author: Kashish Bohra

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