राजसमंद के नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथजी मंदिर में आज गोवर्धन पूजा के दौरान तिलकायत गाय पधारेंगी। गोमाताओं की पूजा-अर्चना के बाद नगर में ग्वालबाल गो-क्रीड़ा करेंगे। पुष्टिमार्ग की प्रधानपीठ श्रीनाथजी मंदिर, नाथद्वारा में गायों का विशेष महत्व है। विशेष रूप से दीपोत्सव व अन्नकूट के दौरान गायों का विशेष श्रृंगार कर सजाया जाता है।

50 गायों को लगाई जाती है मेहंदी मंदिर की नाथूवास स्थित प्रमुख गोशाला के हेड ग्वाल नारायण गुर्जर ने बताया कि दीपोत्सव व अन्नकूट उत्सव को लेकर गायों को सजाने का कार्य शरद पूर्णिमा से ही शुरू हो जाता है। इस दौरान ग्वालबालों द्वारा गोशाला में मोर पंख की पट्टियां, “मोर पंख के मोती”, घुंघरू, सिंगों में खोंखल लगाए जाते हैं, जो चुनिंदा गायों को ही पहनाए जाते हैं। गले का कंठा हार, पीतल की घंटियां, लोहे के बड़े टोकर, सिंगो की चोटी, और लगभग 50 सफेद गायों को मेहंदी लगाई जाती है।

100 गायों का श्रृंगार पूरा किया दीपावली से एक दिन पहले तक लगभग 100 गायों का श्रृंगार पूरा कर लिया जाता है, जबकि मुख्य गायों को दीपावली के दिन सुबह सजाया जाता है। दीपावली के दिन सुबह 11 बजे के करीब गायें नाथूवास गोशाला से वल्लभ विलास पहुंचीं। यहां से दोपहर 4 बजे वे बड़ा बाजार, चौपाटी, प्रसादिया की पोल, लाल दरवाजा चौक होते हुए शाम 6 बजे मंदिर के गोवर्धन चौक पहुंचीं।

गायों ने वल्लभ विलास में किया रात्रि विश्राम यहां लालन प्रभु पधारे और कान्ह जगाई के लिए मंदिर के तिलकायत राकेश महाराज ने गोमाताओं को ‘कान्ह जगाई’ कराई। कान्ह जगाई में तिलकायत महाराज द्वारा गोमाताओं को अन्नकूट के दिन मंदिर आने का निमंत्रण दिया जाता है, जिससे ठाकुरजी प्रसन्न हों। दीपावली के दिन गायों ने मंदिर की 4 परिक्रमा पूरी की और रात्रि विश्राम वल्लभ विलास में किया।

2 दिन में मंदिर की 7 परिक्रमा पूरा करती है गायें आज दोपहर करीब 3 बजे गायें फिर वल्लभ विलास से रवाना होंगी और पहले मंदिर की 3 परिक्रमा पूरी करेंगी। दो दिनों में गायें कुल 7 परिक्रमा पूरी करती हैं। इस दौरान गायों के साथ मंदिर से जुड़े हेड ग्वाल व ग्वालबाल सजे-धजे चलते हैं, जहां हीड गायन होता है।

गायों के साथ खेलते हैं ग्वालबाल
इस दौरान ग्वालबाल भी गायों के साथ खेलते हैं। इसके बाद गायें मंदिर के गोवर्धन चौक पहुंचेंगी, जहां लालन प्रभु मंदिर से पधारेंगे और तिलकायत महाराज द्वारा परंपरानुसार गोवर्धन पूजा की जाएगी। यह क्रम लगभग एक घंटे तक चलेगा। पूजा के बाद लालन प्रभु वापस मंदिर पधारेंगे। इसके उपरांत गायें गोबर पर चरण रखकर परंपरा को पूर्ण करेंगीं और फिर मंदिर से वापस लौटेंगीं। इस दौरान ग्वालबाल गोमाताओं के साथ खेलकूद करेंगे।

हीड गायन में होता अलग-अलग वर्णन हेड ग्वाल के संग ग्वालबाल हीड गायन में नंदालय का वर्णन, वनों का वर्णन, उनके नाम, गिरिराजजी की महिमा, ब्रज की महिमा, ठाकुरजी, ग्वालबाल और गोमाताओं का वर्णन करते हैं। साथ ही गो-दोहन, गिरिराज पूजन, वल्लभकुल, गोवर्धन पूजा, गिरिराजजी की पूजा और गायों के नृत्य का भी वर्णन किया जाता है।






