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कैडर पुनर्गठन की मांग को लेकर न्यायिक कर्मचारियों की हड़ताल:बोले- सिर्फ फाइल घूम रही, सरकार ने फैसला नहीं लिया तो उग्र आंदोलन होगा

न्यायिक कर्मचारियों ने शनिवार को कैडर पुनर्गठन की मांग को लेकर जिलेभर की अदालतों में कामकाज ठप कर दिया। जिला मुख्यालय समेत उपखंड स्तर की अदालतों में कार्यरत कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन किया।

कर्मचारियों ने पहले कोर्ट परिसर में नारेबाजी करते हुए अपनी मांगों को दोहराया, फिर कलेक्ट्रेट के बाहर धरने पर बैठ गए। इस हड़ताल के चलते न्यायिक कार्य पूरी तरह से प्रभावित हुआ और आमजन को परेशानियों का सामना करना पड़ा।

न्यायिक कर्मचारी लंबे समय से कैडर पुनर्गठन की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार की तरफ से अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है। कर्मचारियों का कहना है कि वे कई बार ज्ञापन और प्रस्ताव भेज चुके हैं, लेकिन सरकार उनकी बात सुनने को तैयार नहीं है।

बार-बार आश्वासन, लेकिन समाधान नहीं

न्यायिक कर्मचारी संघ के जिला अध्यक्ष सुभाष मूंड ने कहा कि राजस्थान न्यायिक कर्मचारी महासंघ के आह्वान पर यह आंदोलन किया जा रहा है। सरकार ने कई बार कैडर पुनर्गठन को लेकर आश्वासन दिया, लेकिन फाइलें सिर्फ घूम रही हैं। हमारी पदोन्नति की राह वर्षों से रुकी हुई है, न तो पदोन्नति हो रही है और न ही वेतन असमानता को दूर किया जा रहा है। हम सिर्फ न्याय नहीं, अधिकार भी चाहते हैं।

सुभाष मूंड ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि सरकार ने समय रहते कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया तो आंदोलन और उग्र रूप ले सकता है। उन्होंने कहा कि न्यायिक कर्मचारियों का धैर्य अब जवाब दे रहा है। बार-बार की उपेक्षा के चलते कर्मचारियों में रोष बढ़ता जा रहा है।

सुरेन्द्र मूंड बोले—सरकार को जगाने के लिए मजबूरी में प्रदर्शन

संघ के वरिष्ठ सदस्य महेन्द्र मूंड ने कहा कि सरकार बार-बार मांगों को अनदेखा कर रही है। हम पिछले कई वर्षों से शांतिपूर्वक समाधान की उम्मीद में बैठे हैं, लेकिन अब पानी सिर के ऊपर जा चुका है। कैडर पुनर्गठन का प्रस्ताव तैयार होने के बावजूद उसे लागू नहीं किया गया। अगर हमारी मांगे नहीं मानी गईं, तो हमें लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी।

उन्होंने यह भी बताया कि राज्य सरकार के स्तर पर कार्मिक विभाग, न्याय विभाग और वित्त विभाग के बीच समन्वय की कमी के कारण यह मुद्दा बार-बार अटकता रहा है। कर्मचारी अब केवल आश्वासन नहीं, ठोस आदेश चाहते हैं।

आमजन पर पड़ा असर

शनिवार को हड़ताल के कारण अदालतों में कोई कामकाज नहीं हो सका। कई मामलों की सुनवाई टल गई, तो वहीं जमानत और दस्तावेज सत्यापन जैसे काम भी अटक गए। वकीलों और वादकारियों को बिना काम के वापस लौटना पड़ा। इससे आमजन की न्यायिक प्रक्रिया में आस्था को भी झटका लगा है।

Kashish Bohra
Author: Kashish Bohra

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