दीपावली के अगले दिन अन्नकूट पर्व पारंपरिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष गोवर्धन पूजा दीपावली के तीसरे दिन बुधवार को मनाई जा रही है। यह दिन केवल पूजा नहीं, बल्कि ‘छोटी काशी’ कहलाने वाले जयपुर शहर की राजसी परंपरा और लोक भक्ति का जीवंत उत्सव भी है।
अन्नकूट का यह पर्व जयपुर में आमेर रियासत के दौर से चला आ रहा है। इतिहासकारों के अनुसार- दीपावली के साथ जब नया अन्न बाजार में आता था तो उसकी खुशी में भरतपुर के ब्रज की परंपरा के अनुसार अन्नकूट बनाया जाता था।
महाराजा सवाई जयसिंह ने इस लोक परंपरा को राजसी मान्यता दी थी। जयपुर के 18 प्रमुख मोहल्लों में हर साल इस दिन विशेष प्रसाद बनता था।
ब्रज की यह परंपरा भरतपुर से आमेर होते हुए जयपुर पहुंची इस अवसर पर नए अन्न का स्वागत किया जाता है। यह प्रकृति और परंपरा के अद्भुत संगम को दर्शाता है। शहरभर में भगवान गोवर्धन का पूजन कर उन्हें अन्नकूट का विशेष भोग लगाया जा रहा है।
भरतपुर और जयपुर के बीच घनिष्ठ संबंध रहे हैं। भरतपुर गोवर्धन की 84 कोस परिक्रमा का हिस्सा है। यहीं से यह लोक परंपरा आमेर होते हुए जयपुर तक पहुंची।
जयपुर की स्थापना के बाद गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के मंदिरों जैसे गोविंददेवजी, गोपीनाथजी और राधा-माधवजी के कारण यह ब्रज परंपरा गुलाबी नगरी में रच-बस गई।


महाराजा सवाई जयसिंह ने आयोजन के लिए दिया अनुदान महाराजा सवाई जयसिंह ने इस लोक परंपरा को राजसी मान्यता दी। उन्होंने अन्नकूट महोत्सवों को बढ़ावा दिया। मंदिरों तथा मोहल्लों में नए अन्न से बने व्यंजनों के आयोजन के लिए अनुदान भी दिया।
इस पर्व पर हर मोहल्ले में अलग-अलग व्यंजन प्रसिद्ध हुए। कहीं अन्नकूट के साथ गट्टे की सब्जी बनाई जाती थी तो कहीं कढ़ी-बाजरा।
कहा जाता है कि जयपुर के 18 प्रमुख मोहल्लों में हर साल इस दिन विशेष प्रसाद बनता था। वहीं हर क्षेत्र की अपनी ‘अन्नकूट पहचान’ होती थी।






