राजस्थान के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और भरतपुर के वरिष्ठ नेता गिर्राज प्रसाद तिवारी का 105 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन की खबर से पूरे राज्य में शोक की लहर दौड़ गई।
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने गिर्राज प्रसाद के निधन पर संवेदनाएं व्यक्त कीं। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक्स पर अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए लिखा कि गिर्राज प्रसाद तिवारी का निधन अत्यंत दुखद है। उन्होंने कहा कि गिर्राज प्रसाद तिवारी का संयमित और प्रेरणादायक जीवन सभी के लिए उदाहरण था। इतनी उम्र में भी उनकी जिंदादिली और तेज स्मरणशक्ति लोगों को प्रभावित करती थी।

मुख्यमंत्री भजनलाल अंतिम संस्कार में होंगे शामिल मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गिर्राज प्रसाद तिवारी के अंतिम संस्कार में शामिल होंगे। वो सुबह करीब 11.30 बजे हेलिकॉप्टर से पहुंचेंगे, स्थानीय प्रशासन ने सीएम के दौरे को देखते हुए तैयारियां शुरू कर दी है। शहर के झील का बाड़ा स्थित हेलीपैड को दुरुस्त किया जा रहा है।
अंतिम संस्कार के लिए पूर्व सांसद पंडित रामकिशन शर्मा, विधायक डॉ.ऋतु बनावत, कांग्रेस जिलाध्यक्ष दिनेश सूपा, वरिष्ठ अधिवक्ता धर्मगोपाल चतुर्वेदी, भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष गिरधारी तिवारी, पूर्व विधायक ग्यारसाराम कोली, प्रधान मुकेश कोली, व्यापार महासंघ के जिलाध्यक्ष संजीव गुप्ता समेत कई लोग पहुंचे हैं।
आज पैतृक गांव में होगा अंतिम संस्कार गिर्राज प्रसाद तिवारी का अंतिम संस्कार आज उनके पैतृक गांव बिड्यारी, बयाना में किया जाएगा। परिवार, समर्थक और स्थानीय लोग उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए मौजूद रहेंगे। राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि भी श्रद्धांजलि देने पहुंचेंगे।
1920 में हुआ जन्म, वकालत से राजनीति तक का सफर गिर्राज प्रसाद तिवारी का जन्म 1920 में हुआ था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत वकालत से की और धीरे-धीरे राजनीति की ओर कदम बढ़ाए। वकालत के क्षेत्र में उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई और उसके बाद सार्वजनिक जीवन में लोगों की सेवा करने का संकल्प लिया।

गिर्राज प्रसाद तिवारी का राजनीतिक जीवन और योगदान गिर्राज प्रसाद तिवारी ने स्थानीय स्तर पर प्रधान और जिला प्रमुख के पद पर रहते हुए जनसेवा का कार्य किया। इसके बाद वे दो बार विधायक चुने गए और जनता के मुद्दों को मजबूती से विधानसभा में उठाया।
उनका सबसे अहम कार्यकाल 1985 से 1990 तक रहा, जब वे राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष के पद पर आसीन हुए। इस दौरान उनकी निष्पक्षता, संयम और नेतृत्व कौशल की व्यापक सराहना हुई। उन्होंने सदन की गरिमा और परंपराओं को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

